Sunday, March 01, 2009

इश्क कुछ ऐसे हो जाए, की दिल को भी ख़बर न हो

इश्क कुछ ऐसे हो जाए
की दिल को भी ख़बर न हो
छिन जाए करार, और फिर
बस कोई सब्र न हो

काफिर जब नज़रें होने लगें
तो मासूम दिल को हो हैरानी
जब आरजू ही दिल से खेले लुक्का-छुपी
तो कैसा दूध, कैसा पानी

नाप - तोलकर हम मुस्काएं
बेखबर ख़ुद राजदार , कि वह कौनसा राज़ है छुपाये
यह कैसी बात है जो सिर्फ़ नज़रें फ़रमाएँ?
लेकिन इकरार से भी इतेरायें ?

हमारे गाल पर उतरी एक पलक
बन जाए उनकी चुराई हुई झलक
हमारे दिल में गूंज्नेवाली
उनकी आवाज़ कि वह खनक

एक ख़याल , दो लव्ज़,
उनकी हलकी - सी एक मुस्कान
इनके लिए तरसने लगे हम
बस इतनी सी होगी इश्क कि पहचान

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