Monday, January 26, 2009

नया कारवां ( a new journey )

मन बहक जाता है
कभी- कभी ।
बेगानों, अन्जानों से रिश्ते बुन लेता है
कभी-कभी ।
लेकिन आँखें न धोखा खाएँ कभी
ये तो हैं रूह की परछाइयां।
खोजती रहे उसी पुराने हमसफ़र को
जिनसे बिछडे अब एक अर्सा हो गया।

जब ख़्वाबों, कहानियों की सैर कर रहे थे आप
ये कर रही थीं आपका इंतज़ार,
और आज मिले हैं तो झुक गई हैं
क्योंकी अब खत्म हुई इनकी तलाश।

फिर मिल रहे हैं बिचडे हमसफ़र
फिर से एक नया कारवां,
हाथ थामकर यूँ चल पड़े हैं
जैसे कभी कहा ही न था अल्विदा ।

2 comments:

Closeguy said...

GOoood ...in fact very good..

The only thing i didn't like is happy ending..strange?..:)

Prajakta said...

Thanks for the kind words =) I felt endings are nice when happy, or else they aren't really endings are they?