उनकी ऑंखों से बेह्ते
जसबातों का झरना,
मेरे मन की प्यास
कुछ ऐसे बुझाए,
कि रुक न सके
मेरी प्रीत का सागर.
ऑंखों की वह हल्की चमक
कुछ कह गई,
अनकही...
मेरे सप्नों की दुनिया
आबाद कर गई,
मासूमियत उनकी...
उनके मन की परछाई
जैसे ऑंखों ने ओढ ली हो,
हल्की मुस्कान ने उनकी
जैसे मेरी ख्वाइशें चुरा ली हों...
न छूने की आस,
न प्रीत की प्यास,
अब है, सिर्फ एक एह्सास
जो मेरी रुः को
कर चला आजाद...
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