Saturday, March 15, 2008

सहर

दिल की ख्वाबगाह में
हुई सहर
शीतल दस्तक पर बरसात की
तसव्वुर की रज़ाई में लिपटी
मेरी ख्वाइशों ने
ली अंगडाई
रुः की शैया से उतरीं
ज़िंदगी की ज़मीन पर

वास्तव में अपना एक
वजूद कायम करने...
रुकी हुई-सी सासों ने
की थी जिन बुलंदियों की दुआ
उन्ही नामुंकिन-से ख्वाबों में
सासें भरने...

1 comment:

Shashank said...

Such moving words, each as beautiful as a pearl, woven carefully into a necklace of a poem. It's serene!

Keep up the great work. Can't wait to read more!