पलकों के पीछे
मासूम-से जो सपने छिपे
क्यों नहीं हो जाते वे बदमाश?
क्यों न उडा ले जाते
हमें अपने साथ?
जीतकर हमें यथार्थ से
क्यों न देते आज़ादी का तोहफा?
क्यों न करते कोई जादू
कि हो जाऍं हम ज़माने से बेवफ़ा?
उनमें है वह काबीलियत,
तो फिर कैसी है बन्दिश?
खुशियों से मिलकर हमारी
क्या नहीं रच सकते यह साज़िश?