मंजिल की चाह जब डगमगाए
बेखौफ बढ़ते रहना फिर भी
दिल में रखना यह एतबार
रोक सकेगा न कोई तुम्हारा रास्ता
न कोई तूफ़ान न सैलाब न चट्टानें
उस खुदा के दिल से निकली दुआ हो तुम
यह कुदरत भला उसकी कैसे न माने?